प्रभावशाली लोगों को रोज सब्जियां मिल रही जब्त सब्जियां और फल अधिकारियों के घर 






  इंदौर। प्रदेश के सबसे बड़े और सबसे ज्यादा राजस्व देने वाले शहर इंदौर के कोरोना के कारण अंदरूनी हालात खराब होते जा रहे है। लॉक डाउन से गरीब और मध्यमवर्ग पिस रहा है, जबकि रसूखदारों को शराब, गुटखा और तंबाखू तक उपलब्ध है। गरीब खाने और मध्यम वर्ग रोजमर्रा की वस्तुओं को लेकर परेशान है। ऐसे में प्रशासन नए-नए प्रयोग करने पर तुला है! सब्जी बॉस्केट का नया प्रयोग बुरी तरह फेल हो गया। 

  सरकार और प्रशासन हर व्यवस्था का बोझ जनता पर डाले जा रहा है और खुद वाहवाही लूटने में व्यस्त है। इसको इस बात से भी समझा जा सकता है कि स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा बांटे जाने वाले भोजन के पैकेट लेने वालों की भीड़ बढ़ रही है। वहीं उनके दानदाता घटते जा रहे हैं। मतलब साफ है कि शहर में 'लूट के लाइसेंस' बांटने के बाद आम आदमी की आर्थिक कमर पूरी तरह से टूट गई। सरकार कोई उपाय नहीं कर पाई, बल्कि व्यवस्थाओं का केंद्रीयकरण जरूर कर दिया। 22 मार्च से जोड़े तो लॉक डाउन के 40 दिन पूरे हो गए। इस सवा महीने में जनता ने सिर्फ खोया ही है, पाया सिर्फ कमजोर होते आर्थिक हालात और सामाजिक दूरी। 
  वर्तमान हालातों में शारीरिक या सामाजिक दूरी का महत्व भी खत्म हो गया है। मध्यम वर्ग और गरीब के हालात बेकाबू होते जा रहे हैं, कमाई बंद पर खर्च चालू है, वो भी कालाबाजारी के कारण जिसपर प्रशासन का कोई अंकुश नहीं! कई लोगों का बैंक बैलेंस खत्म हो चुका है। बेरोजगारी बढ़ती जा रही है और लोगों का सब्र टूटने लगा। यदि ऐसा ही रहा तो कुछ दिनों में सड़क पर लूटपाट शुरू हो जाएगी। क्योंकि, गरीब लोग भूखे मरने को मजबूर हैं। ऐसे लोग जो रोज सब्जी ,चाय, नाश्ते के ठेले लगाकर परिवार चलाते थे, वो सब बेरोजगार हो गए। मध्यम वर्ग जिसके हर तरह के काम धंधे बंद हैं, वो पैसा कहां से लाए?

    इस बीमारी एवं लॉक डाउन में शहर की जनता उन सभी जरूरी वस्तुओं के लिए परेशान है, जो पुलिस, नगर निगम, प्रशासन को आसानी से उपलब्ध है। 40 दिन बाद प्रशासन ने जनता के लिए सब्जी की जरूरत को माना। मगर, रसूखदार और प्रभावशाली लोगों को रोज सब्जियां मिल रही है। दिखावे की कार्रवाई में सब्जियों के 2 ट्रक या छोटी गाड़ियां पकड़ी और उन्हें चिड़ियाघर भेजना बताया! मगर, चिड़ियाघर पहुंचने से पहले रास्ते मे ही आधी सब्जियां गायब होती रही। अब फिर सब्जियों को बेचने का काम उन्हीं चुनिंदा व्यापारियों को दिया गया, जिन्होंने किराना में जमकर लूट मचाई और अभी तक लूट रहे है। कुछ जगह तो नेताओं के कहने पर उनके समर्थकों को किराना सामान बेचने की अनुमति दे दी गई, जिनकी कोई किराना दुकान ही नहीं है।   

    सरकारी नौकरी वालों को तो तकलीफ नहीं, उनकी तनख्वाह तो मिलेगी ही! ऐसे लोग जो निजी संस्थानों और निजी काम करते हैं, उनके संस्थान और काम बंद है तो उनके  वेतन और आर्थिक संकट की चिंता कौन करेगा? प्रधानमंत्री ने किसी का 3 माह का वेतन नहीं काटने को कहा है। लेकिन, घर बैठे का वेतन कौन देता है? ऐसे लोग जिनके खुदरा व्यापार है, छोटी दुकानें है, जिन पर विभिन्न तरह के व्यापार करते है। उनके यहां काम करने वाले कर्मचारियों का क्या होगा? इस सबके बीच प्रशासन ने चुनिंदा किराना और सब्जी व्यापारियों को व्यवस्था सौंप दी ,जो जमकर लूट चुके है और लूट रहे हैं। 

इलाज या लूट 

   शहर में बीमारी की रोकथाम के उपाय किस तरह जा रहे हैं, ये भी जगजाहिर है। निजी अस्पतालों में आम बीमार का इलाज नहीं किया जा रहा! यदि किया जा रहा तो हज़ारों के बिल थमाए जा रहे हैं। उस दौरान मृत्यु हो गई तो लाश देने में आनाकानी की। शहर के कई क्षेत्रों में लोग घर में रहकर की बीमारियों से लड़ रहे हैं। क्योंकि, डॉक्टर देखने को तैयार नहीं है। कई लोग अपने परिजन को लेकर एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल दौड़ते रहे और उनका अपना हाथ में ही मर गया। ऐसे हॉस्पिटल पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई! ऐसे डॉक्टरों का लाइसेंस रद्द नहीं किया गया। कोरोना के लिए छाती रोग विशेषज्ञ की आवश्यकता है! लेकिन, एमवाय अस्पताल में डॉ. भार्गव जो इसके प्रभारी हैं, वो तो घर बैठे हैं। उनकी जगह हड्डी रोग विशेषज्ञ को कोरोना का नोडल अधिकारी बनाया गया, क्योंकि वे अधिकारियों की पसंद के डॉक्टर है। 

ज्यादा जरूरी बियर निर्माण
   इंदौर प्रशासन जनता के प्रति कितना गंभीर है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लॉक डाउन में भी सिमरोल (महू) में बियर बनाने की फैक्ट्री को अनुमति  दे दी गई। माउंट एवरेस्ट ब्रेवरीज प्रालि मेमडी, ग्राम सिमरोल, तहसील महू को 28 अप्रैल को इंदौर कलेक्टर ने निर्माण अनुमति जारी की।