कोरोना से लड़ने से पहले उसकी प्रकृति जानना ज़रूरी


   


 


दुनियाभर में वायरस के बारे में अध्ययन किए जाते रहे हैं । ज़ॉन हॉप्किंस विश्वविद्यालय ने वायरस के बारे में जो जानकारी प्रकाशित की है उसके आधार पर :-
1- कोई भी वायरस किसी जीवित कोशिका वाले किसी ऑर्गेनिज़्म की श्रेणी के सदस्य नहीं होते बल्कि प्रोटीन और लिपिड का कवच धारण करने वाले डी.एन.ए. अथवा आर.एन.ए. से युक्त ऐसे माइक्रॉब्स होते हैं जो जीवित कोशिकाओं के सम्पर्क में आने के बाद ही सक्रिय होने की क्षमता रखते हैं, और तब उनका व्यवहार किसी जीवित ऑर्गेनिज़्म की तरह हो जाता है ।
2- जीवित कोशिकाओं (मनुष्य या पशु-पक्षियों की आँख, नाक या मुँह की नाज़ुक मेम्ब्रेनस कोशिकाओं) के सम्पर्क में आने के बाद वायरस का कवच बायोकेमिकल अणुओं से प्रतिक्रिया करके टूट जाता है जिससे वायरस के डी.एन.ए. या आर.एन.ए. के अणु जीवित कोशिकाओं के सीधे सम्पर्क में आ जाते हैं और तेजी से अपनी अपनी संख्या बढ़ाने लगते हैं जो अंततः जीवित प्राणियों के शरीर में विकृति उत्पन्न करते हैं । 
3- चूँकि वायरस जीवित कोशिकाओं की श्रेणी में नहीं आते इसलिये इन्हें मारा नहीं जा सकता बल्कि सामान्यतः ये स्वतः ही कुछ समय बाद निष्क्रिय होकर क्षरित हो जाते हैं । इनका क्षरणकाल तापमान, हवा में आर्द्रता और वायरस के सम्पर्क स्थान की प्रकृति के ऊपर निर्भर करता है। 
4- वायरस बहुत शीघ्र क्षरित हो जाते हैं, किंतु इनकी रक्षा के लिए प्रोटीन अणुओं के ऊपर लिपिड का कवच होता है । वायरस की यह संरचनात्मक प्रकृति हमारे लिए वरदान है । यदि हम साबुन से अच्छी तरह अपने हाथों को धोने की आदत डाल लें तो वायरस का यह सुरक्षा कवच साबुन में घुल कर झाग के साथ अलग हो जाता है । शेष बचे प्रोटीन के अणु स्वतः ही क्षरित हो जाते हैं । हाथ धोने के बाद यदि हम हाथों को आग में जरा सा सेंक लें तो प्रोटीन ज़ल्दी टूट कर क्षरित हो जाती है । 
5- गर्मी फ़ैट को भी पिघला देती है इसलिए 25 डिग्री सेल्सियस से तनिक अधिक तापमान वाले पानी से हाथों और स्तेमाल में आने वाले कपड़ों को धोना ज़्यादा असरकारी होता है । गर्म पानी में साबुन का झाग भी अच्छी तरह बनता है जो वायरस कोशिका के सारे क्षरित अणुओं को अलग करने में सहायक होता है । अल्कोहल या 65 प्रतिशत अल्कोहल मिश्रण वाले किसी द्रव में भी फ़ैट को घुला देने की क्षमता होती है । वायरस के लिपिड (फ़ैट) कवच को समाप्त करने के लिए इनका भी स्तेमाल बहुत उपयोगी है ।  
6- एक हिस्सा ब्लीचिंग पावडर में पाँच हिस्सा पानी मिले घोल में भी प्रोटीन को तोड़ देने की क्षमता होती है । आज पूरी दुनिया में वस्तुओं को विसंक्रामित करने के लिए इसी घोल का स्तेमाल किया जा रहा है। 
इसलिए कोरोना या स्वाइन फ़्लू जैसे किसी वायरस से घबराने की बिल्कुल आवश्यकता नहीं है । मेडिकल अस्पर्श्यता का ध्यान रखें और साबुन एवं ब्लीचिंग पावडर से कोरोना का डटकर सामना करें । ध्यान रखें किसी भी वायरस की स्पेसिफ़िक दवाई वायरस के केवल उसी स्ट्रेन पर प्रभावी होती है जबकि साबुन-पानी और ब्लीचिंग पावडर किसी भी वायरस के सुरक्षा कवच को छिन्न-भिन्न कर डालने की अद्भुत क्षमता रखते हैं! 
और अंत में यह भी ध्यान रखिये कि सूर्य का ताप हर अपवित्र चीज को पवित्र कर देने का अद्भुत गुण रखने के कारण ही सनातन संस्कृति में स्तुत्य और पूज्य माना जाता रहा है । सूर्य से श्रेष्ठ कोई चिकित्सक नहीं, सूर्य से श्रेष्ठ कोई पापनाशक नहीं!