रक्षाबंधन पर स्वदेशी अपनाने के लिए 3 साल से बांट रहीं मौली धागे की राखियां, अब तक 9 हजार बांट चुकीं
बिलासपुर. स्वदेशी अपनाने और चायनीज सामान हटाने के लिए ममता पांडेय ने एक अच्छी पहल की शुरूआत की। वे तीन साल से रक्षाबंधन के त्योहार को परंपरा से जोड़ने के लिए कार्य कर रही हैं। बिलासपुर से इस पहल की शुरूआत कर अब ममता रायपुर में भी लोगों को जागरूक कर रही हैं। स्कूल, कॉलेज के साथ ही अन्य कैंपस में सैकड़ों कार्यक्रम कर मौली धागा की 9 हजार राखियां बांट चुकी हैं।
पुराणों में दिया है मौली धागे का महत्व
ममता का कहना है कि स्वदेशी अपनाने के लिए सोशल साइट से लेकर सभी जगह बातें तो हो रही हैं लेकिन इसके लिए कदम उठाने वाले कम हैं। उन्होंने इसी सोच के साथ ही एक पहल शुरू की। मौली धागे की राखी बांधने के लिए वे न सिर्फ लोगों को प्रेरित कर रहीं बल्कि उन्हें निशुल्क राखियां उपलब्ध भी करा रही हैं।
अभी तक 7 हजार से अधिक लोगों को मौली धागे का महत्व समझा चुकी हैं। उनका यह अभियान भी जारी है। उन्होंने बताया कि शुरुआत में लोगों को समझाना आसान नहीं था, सभी को आकर्षित करने वाली राखी ही चाहिए होती थी लेकिन अब लोग मौली का महत्व समझने लगे है, वे इससे राखियां बनाना सीखना चाहते हैं।
ममता ने बताया कि त्योहार के इस बदलते स्वरूप को देखकर मन में पीड़ा हुई। इसके बाद पुराणों में दिए मौली धागे के महत्व को बताना शुरू कर दिया। वे जागरूक करते हुए बताती हैं कि मौली धागे से ज्यादा मूल्यवान राखी तो भाई की कलाई पर कुछ और हो नहीं सकती। फिर ममता ने अपने पति विनोद पांडेय के साथ व एडवरटाइजमेंट कंपनी के सहयोग से इस दिशा में काम शुरू कर दिया।
मौली से मिलेगी अच्छी सेहत
वैदिक परंपरा में मौली को ही रक्षा सूत्र माना गया है। मौली धागा बांधने से शरीर में वात, पित्त और कफ संतुलित रहता है। इस तरह बहने भाई को राखी के साथ सेहत भी उपहार में दे सकती हैं। पुराणों में बताया गया है कि मौली में ब्रम्हा, विष्णु, महेश का वास होता है और साथ ही लक्ष्मी, सरस्वती और शक्ति की ऊर्जा भी निहित है।
कपड़ा स्टोर व बगीचों से की शुरुआत
ममता ने अपने इस कार्य की शुरूआत बिलासपुर के कुछ कपड़ा स्टोर व बगीचों से की। यहां लोगों के बीच जाकर उन्हें मौली का महत्व समझाया और जागरूक किया। अब विभिन्न संस्थाओं के साथ ही स्कूल, कॉलेज में लोग उन्हें बुलाकर मौली का महत्व समझ रहे हैं।