कोटेश्वर में बसे 45 वृद्धों को सरकार ने फिर बेसहारा  कर दिया, अखंड रामधुन के खंडित होने का खतरा!
कोटेश्वर में बसे 45 वृद्धों को सरकार ने फिर बेसहारा 

कर दिया, अखंड रामधुन के खंडित होने का खतरा!

  इंदौर। जीवन के आखरी पड़ाव में जिन्हें अपने परिवार का साथ नहीं मिला, लगता हैं सरकार भी उनका साथ छोड़ रही हैं। धार जिले की कुक्षी तहसील के कोटेश्वर तीर्थ पर सरदार सरोवर में नर्मदा के बढ़ते जलस्तर से डूब प्रभावित अखंड रामधुन और अन्नक्षेत्र के 45 वृद्धों को बगैर पुर्नवास के कोटेश्वर तीर्थ से हटा दिया गया! सरकार ने इन वृद्धों के पुनर्वास की सुध नहीं ली गई। ये बेसहारा वृद्ध 28 सालों से अखंड रामधुन गा रहे हैं। अभावों के बीच भी इन वृद्धों ने रामधुन को खंडित नहीं होने दिया।
  यह पीड़ा 'दगडूजी महाराज मानव सेवा संस्थान' के अन्नक्षेत्र और रामधुन से जुड़े वृद्धों की हैं। उन्हें अपने परिवार द्वारा त्यागे जाने के बाद बुढ़ापे में दर-दर की ठोकर खाते हुए यहां आसरा मिला था। लेकिन, कोटेश्वर तीर्थ के डूब में आने से आश्रम में बसे इन बेसहारा 45 वृद्धों के फिर सड़क पर आने की नौबत आ गई! जबकि, इन्हें बसाने की चिंता शासन को करनी थी! लेकिन, अब समाज फिर उन्हें जीवन यापन के लिए मदद देने के लिए तैयार हैं।
  यहां लकवाग्रस्त, कुष्ट रोगी, मानसिक रोगी और खटियां में पड़े अस्वस्थ बुजुर्ग महिला-पुरुष हैं। परेशान और बेघर होने की पीड़ा से चिंतित वृद्धों ने सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए पिछले दिनों सड़क पर बैठकर अखंड रामधुन की थी! लेकिन, सरकार के नुमाइंदों ने इस और ध्यान नहीं दिया। जब इनको सहारा देने कोई आगे नहीं आया, तो ग्राम कोठड़ा के भारत मुकाती ने वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर अपना निजी मकान उन्हें सौंपकर रहने की जगह दी! अब ये वृद्ध सरकार से स्थायी आसरे की मांग कर रहे हैं।
   दरअसल, डूबते कोटेश्वर तीर्थ पर स्थायी निवासियों ने तो पुर्नवास में अपनी गृहस्थी सजा ली! लेकिन, इस तीर्थ पर सालों से चल रही रामधुन और वृद्धाश्रम के लिए जमीन विस्थापन का काम अभी तक नहीं हो पाया। कहने को यह अखंड रामधुन के सहभागियों का मामला है, लेकिन वास्तव में यह वृद्धाश्रम हैं। ये बेसहारा अन्य लोगों की तरह अपनी पुर्नबसाहट की गुहार लगा रहे हैं। लगभग 20 महिलाएं और 25 पुरुष आश्रम के सहारे अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। अभी जहां नर्मदा का बेक-वाटर पहुंचा हैं, वहां से लगभग आधा किलोमीटर दूर ग्राम कोठड़ा में ये शरणार्थी की तरह रह रहे हैं। सरकार ने रामधुन वृद्धाश्रम के लिए बबुलगांव में जमीन आवंटित कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली! किंतु, वह स्थल पहाड़ी पर होने के साथ नाकाफी हैं। वृद्धावस्था में पहाड़ी से चढ़ना उतरना इनके लिए तकलीफदेह है, इसलिए उन्होंने जमीन को नकार दिया। लेकिन बाद में इनकी कोई सुध नहीं ली गई।
परिवार से बेसहारा लोग
  आश्रम में रह रही भगवती बाई ने अपने मुंहबोले भाई को यहां आकर राखी बाँधी! महाराष्ट्र की सीमा की रहने वाली सुगनाबाई अपनी तीन बेटियां को लेकर 25 साल पहले आश्रम आई थी। बेटियां बड़ी हुई तो आश्रम के सदस्यों ने ही उनकी शादी करवाई। 85 वर्षीय व्यवस्थापक लालजी बाबा ने कहा कि यदि सरकार ने हमें जमीन दी होती तो हम दर दर की ठोकर नहीं खाते, अब तक आश्रम बन गया होता। संस्थान के अध्यक्ष रमेश पाटीदार ने सरकार के निर्णय पर कटाक्ष करते हुए बताया कि डूब क्षेत्र के एक परिवार को 60 बाय 90 फुट का भूखंड और आश्रम के लिए 48 बाय 78 का भूखंड दिया! यह कहां का न्याय हैं। संस्था के गुजराती बापू ने बताया कि सरकार ने लगता हैं कि कागज पर पट्टा दिया और हमने कागज पर ही आश्रम बना लिया।
माहौल परिवार जैसा
  इस आश्रम को माहौल परिवार जैसा हैं। आश्रम के वृद्धों को स्वास्थ्य सुविधा के लिए बड़े षहरों जैसे इंदौर, बड़ौदा ले जाया जाता हैं। मृत्यु होने पर उनके अंतिम संस्कार तक की जिम्मेदार वृद्ध ही संभाल रहे हैं। बीते 30 वर्षो में 8 लोगों की मृत्यु पर वृद्धाश्रम के लोगों ने ही अंतिम संस्कार और उनका भंडारा किया। सेवा की मिसाल यह रही कि नर्मदा परिक्रमा पर आने वाले नर्मदा भक्तों को चौबीसों घंटे भोजन उपलब्ध कराया जाता हैं।
परिवार के रुप में आश्रम
  सरदार सरोवर बांध की वजह से डूब प्रभावितों को जमीन व मकान बनाने के लिए धनराशि दी गई! ये वे 45 वृद्ध महिला-पुरुष हैं जिन्हे बुढ़ापे में दर दर की ठोकरे खाने के बाद अखंड रामधुन के रुप में वृद्धाश्रम का सहारा मिला था। लेकिन अब फिर वे नए सहारे की आस में डूबते कोटेश्वर तीर्थ में बने अपने आश्रम को छोड़कर दूर तो हटे, लेकिन उन्हे कोई रामधुन के लिए नया आशियाना नहीं मिल पाया।