डूबने वाला है निसरपुर, 5 फ़ीट पानी में डटे  35 परिवार, 'डूबेंगे पर हटेंगे नहीं' पर अड़े  
डूबने वाला है निसरपुर, 5 फ़ीट पानी में डटे 

35 परिवार, 'डूबेंगे पर हटेंगे नहीं' पर अड़े

बाग़। श्रद्धा औऱ आस्था की डुबकी अब कोटेश्वर घाट पर नही लगेगी। डूब चुके घाट के बाद इस तीर्थ के 100-150 साल से ज्यादा पुराने 7 मंदिर और आश्रम डूब की कगार पर है। नर्मदा का जल अब घाट के ऊपर बने मंदिरों तक पहुँचने लगा है, जो कुछ दिनों में इन बरसों पुराने मंदिरों को अपने आगोश में लेकर डुबो देगा। अब यह स्वाभाविक सवाल पूछा जा रहा है कि उजड़े लोग तो बस जाएंगे, पर श्रद्धा का यह प्राचीन केंद्र कोटेश्वर कहां विकसित होगा। यह जानकर आश्चर्य होगा कि अब तक यह सुनिश्चित नहीं हो पाया है कि कोटेश्वर का भविष्य क्या होगा?

  मंदिर निर्माण के लिए वर्ष 1996 में राशि आवंटित कर दी गई है। लेकिन वांछित जमीन नहीं मिलने से एक गौशाला के अलावा कोई और निर्माण अभी तक नहीं हुआ। अब, जबकि प्रशासन के अफसरों ने 12 अगस्त तक सब कुुछ खाली करने  का फरमान जारी कर दिया है, ये नहीं बताया कि भगवान कहाँ विराजेंगे। कोटेश्वर परिसर के 2 मंदिर सरकार के अधीन हैं, जबकि 5 मंदिर, दो आश्रम और 2 धर्मशालाएं ट्रस्ट के अंतर्गत संचालित है। यहां कनक बिहारी आश्रम को गेबिनाथ मठ के पास जगह उपलब्ध हो पाई है, जहां गोशाला का निर्माण हुआ। इसके अलावा अभी तक नर्मदा मंदिर, रामधुन अन्नक्षेत्र, वृद्धाश्रम, कोटेश्वर महादेव मंदिर, राम मंदिर, राधाकृष्ण मंदिर और हनुमान मंदिर के निर्माण के लिए भूमि का चयन नहीं हो सका। नर्मदा मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष शिवजी पाटीदार ने कहा कि पवित्र नर्मदा नदी के किनारे ही माँ नर्मदा का मंदिर बनाया जा सकता है! लेकिन, सरकार बस्ती में नर्मदा मंदिर के लिए भूखंड की पेशकश कर रही। ऐसे में चाहकर भी मंदिर नहीं बनाया जा सका। 
   कोटेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी महंत श्रीशिवनारायण पुरी ने बताया कि जिला प्रशासन ने नर्मदा के नए पुल के के पास पहाड़ी आवंटित की है। लेकिन, वहां की स्थिति देखने के बाद सभी ने उसे लेने से इंकार कर दिया। फिर बाबुलगाँव में एक एकड़ जमीन कोटेश्वर के सभी मंदिरों के लिए देने की बात कही गई! लेकिन, 6 एकड़ में फैले कोटेश्वर तीर्थ को एक एकड़ में कैसे बसाया जा सकता है? उन्होंने बताया कि जब तक मंदिर पूरी तरह डूबेगा नहीं, तब तक पूजा अर्चना चलती रहेगी। कोटेश्वर तीर्थ का प्राचीन महत्व रहा है। प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालुओं के अलावा प्रत्येक माह अमावस्या पर यहां 5 हजार से ज्यादा श्रद्धालु डुबकी लगाने आते है। वर्ष में 5-6 भागवत कथा, परिक्रमावासी, सोमवती अमावस्या और नर्मदा जयंती पर बड़े उत्सव होते है। लेकिन, अब वहां लगी 10 से ज्यादा खान पान, पूजा सामग्री, नारियल, चुनरी की दुकान तक समेट ली गई। नर्मदा मंदिर के पुजारी गंगेश शर्मा का कहना है कि अब तक मंदिरों के लिए भूमि का चयन नहीं होने से संशय की स्थिति बनी हुई है। मंदिर में रखी प्रतिमाएँ यथा स्थान पर ही रहेंगी, ताकि नर्मदा के पानी के कम होने पर फिर पूजा की जा सके। 

जलस्तर बढ़ा 

  नर्मदा में समाहित होने वाली नदियों और अन्य जलस्रोतों के जल से नर्मदा का जलस्तर 131 मीटर पहुंच गया। इससे निसरपुर की निचली बस्तियां जल मग्न होती जा रही है। बावजूद इसके परिवार वहां से हटने को तैयार नही है। 'डूबेंगे पर हटेंगे नहीं' के नारों के साथ बुलंद इरादों वाले 35 से ज्यादा परिवार 5 फुट से ज्यादा पानी मे अपनी जिंदगी गुजार रहे है। अधिकारियों की समझाइश का इन पर कोई असर नहीं हुआ। उनकी मांग है कि उन्हें मकान निर्माण के लिए शासन की मददगार विशेष योजना से क्यो वंचित रखा जा रहा है। सरकार उन्हें 5 लाख 80 हजार का पैकेज दे तो वे हटने को तैयार है।