परिवार ही बचाता है, बाल यौनाचार के दोषियों को!

बच्चों का यौन शोषण की अधिकांश घटनाएं 'परिवारों में होती हैवास्तव में ये अबूझ पहेली है और सामाजिक रूप से एक बड़ा खतरा भी! ऐसी घटनाओं में पिता, चाचा, मौसा, भाई, चचेरा भाई या पड़ौसी कोई भी परिवार की बच्ची का शोषण कर सकता है? इसके बाद बच्चे को दुष्कर्म छुपाने के लिए कहा जाता है। यदि मामला पुलिस तक पहुँच जाए परिवार दबाव डालकर मामले को गलत दिशा में मोड़ देता हैइससे सबसे बड़ी दुविधा अदालत के सामने आ जाती है, जो सच जानकर भी अपराधी को सजा नहीं दे पाता! -एकता शर्मा


अख़बारों में अकसर बाल यौन शोषण की घटनाओं की ख़बरें छपती रहती है। लेकिन, घटनाओं ज्यादातर पुरुष पाठक खबर का शीर्षक ही पढ़कर है पन्ना पलट देते हैं! अखबारों की महिला पाठक इसका तो ऐसे शीर्षक पढ़ने के बाद कभी-कभी खबर इसका पढ़ भी लेती हैं, पर सामान्यतः पुरुष ऐसा भी नहीं करते! दरअसल, ये हमारी सामाजिक सोच यौन का एक नमूना है कि कौटुम्बिक व्यभिचार को लेकर हमारा सोच क्या है? परिवारों में ऐसी 6३ घटनाओं को किस नजरिए से लिया जाता है, गवाहों उसी से स्पष्ट होता है कि समाज बाल यौन इसलिए कि परिवार से बना 'घर' भी समाज का ही एक छोटा रूप है और परिवारों की सोच से ही समाज की सोच जन्म लेती है!


ये एक और काला दर्दनाक सच है कि बाल यौन शोषण की ज्यादातर घटनाएं बड़े परिवारों, मुताबिक रिश्तेदारी या बहुत नजदीकी संबंधों में ही होती रूप हैंपुलिस में दर्ज आंकड़ों मुताबिक बाल यौन दृष्टिकोण शोषण के 90३ से 94३ मामलों में परिवार के तो सुरक्षा में तैनात किए गए लोग शामिल होते हैं। जैसी इस वजह से सामाजिक दबाव या बदनामी के भय से घटनाएं दबकर रह जाती है या परिवार के लोग ही उसे सामने नहीं आने देते! जब ऐसी घटनाओं की रिपोर्ट ही दर्ज नहीं होती तो स्वाभाविक है कि बात वहीं रह जाती है। लेकिन, अंततः इसका दर्द उस बच्ची को ही सहना पड़ता है, जो इसका शिकार होती है!


ये कितनी कड़वी सच्चाई है कि बाल यौन शोषण के मामलों में औसतन 4 से 5 आरोपियों को ही अभी तक सजा मिल सकी है। 6३ से 10३ आरोपी सबूतों के अभाव और गवाहों के अदालत में पलट जाने से छूट गए। अदालतों में ऐसे 90३ मामलों के लंबित होने का सबसे बड़ा कारण है कि ऐसे ज्यादातर आरोपी परिवार से या नजदीकी होते हैं और सामाजिक बदनामी के भय से वे गवाही देने भी नहीं आते! यदि आते भी हैं तो अदालत में बदल जाते हैं और प्रकरण कमजोर हो जाता है। यूनिसेफ के मुताबिक भारत के 53३ बच्चे किसी न किसी रूप से यौन शोषण का शिकार बनते हैंसामाजिक दृष्टिकोण को ध्यान रखकर विचार किया जाए तो आज सबसे बड़ी चुनौती समृद्ध सामाजिक संरचना बनाने की है ताकि बाल यौन शोषण जैसी घटनाएं थम सके! लेकिन, इस दिशा में अभी लंबा सफर तय करना पड़ेगा! ऐसी घटनाओं को दबा दिए जाने का पर हैं!